जोधपुर। निश्चित तौर पर जोधपुर शहर पुलिस की सराहना करनी ही चाहिए। कल जिस तरह से पुलिस ने नए साल की पार्टियों को अपनी निगाह में रखा और हाथ में पकड़े डंडे व खाकी वर्दी की जिम्मेदारी को निभाया उससे और किसी के हौसले बढ़े ना बढ़े, लेकिन अभिभावक खुश है। पुलिस ने कहीं पर भी हदें नहीं तोड़ी और न ही अपनी जिम्मेदारियों से कहीं वो भटकती दिखी। गिनाने को भले ही कुछ लोग कुछ अपवाद गिना सकते हैं, लेकिन कल पुलिस ने न तो सड़कों पर मटरगश्ती होने दी और न ही होटलों में बने स्टेज के पास किसी शराबी या किसी अन्य मनचले को हाथ खोलने दिए। वर्दी धारी पुलिस के साथ सादी वर्दी में तैनात पुलिस के सिपाहियों की नजरें हर पल महंगे कपड़ों के बीच छिपे बदमाशों के चेहरे तलाशती रही और जब कोई मिला तो उन्होंने उसे सीधा घर का रास्ता दिखला दिया। पुलिस के इस कड़क अंदाज में कई चेहरों पर कालिख पुतने से रह गई, क्योंकि जिस तरह से जश्न की तैयारियां नजर आई थी और होटलों में प्रवेश के पास बिके थे उससे आशंकाए डराने जैसी ही बनी थी पर पुलिस जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभाती रही, लेकिन दुख की बात यह है कि होटलों में आयोजित कार्यक्रमों में कुछ जगह बेटियां तो संयमित रही, पर बहुए बावली हुई वी ही नजर आई। अपने पतियों के साथ आई इन नवविवाहिताओं ने खुलकर सामाजिक मर्यादाएं लांघी और उनके इस कृत्य में उनके पतियों ने उनका पूरा साथ दिया। कोई पति अपनी पत्नी को बार बार भरी भीड़ में कभी गाल पर तो कभी कहीं ओर यानी दर्शकों की डिमांड पर किस देकर इतराता नजर आया तो कोई बावली बहू खुले आम अपने पति के साथ बेहुदगी करने से नहीं चुकी। ख्ूाब तमाशा मचा।
एक नहीं ऐसे जोड़े कल खूब थे जो यह भूल गए कि वे अपने घर में नहीं और न ही किसी हनीमुन पैलेस में हैं जहां वो ललचाई नजरों की तृष्णा पूर्ति के लिए अपनी पत्नी के साथ जैसे चाहे जो करे। क्योंकि अभी भी अपने जोधपुर में इस बात की बड़े बुजुर्गों ने इजाजत नहीं दी है कि भरी भीड़ में अपनी पत्नी को बांहों में भर दो, कमर में हाथ डालकर फुदको और उसे गोदी में उठाकर दांत निकालो। दरअसल यह सब कहने सुनने में ही शर्म महसूस होती है, पर कल तो कइयों ने इससे भी बहुत आगे जाकर हरकते करने में भी लज्जा महसूस नहीं की। हां नाचने में कोई बुराई नहीं है और नए नवेलों को तो साथ नाचना भी चाहिए, लेकिन तरीका तो मर्यादित होना चाहिए। अपना घर हो तो जो चाहो करो, कौन रोकने वाला है पर जहां भीड़ है...भीड़ में बच्चे हैं.....बुजुर्ग है....जवान बेटियां हैं.....बाहर से आए हुए मेहमान हैं....और कुछेक छंटेल बदमाश और शराबी युवक भी जहां खड़े हो वहां क्या कोई पति-पत्नी इस तरह से नाचते हैं ? यह तो गनीमत रही कि पुलिस मुस्तैद थी...वरना इन बावली बहुओं की हरकतों को देखकर कोई शराबी युवक या ग्रुप में आए बाहुबली हरकत पर उतारू हो जाते तो किस मुंह से बहू सहायता के लिए चिल्लाती...एक मिनट के लिए अभी ही सही वो कल्पना करके तो देखे ....हलक सूख जाएगा। खुले आम इस तरह के नृत्य का भीड़ में खड़े बच्चों पर क्या फर्क पड़ रहा होगा ? क्या यह सोचना अब शहर की इन बावली बहुओं की जिम्मेदारी में शामिल नहीं है ? चलो आप तो घर से अकेली अपने पति के साथ आई हैं लेकिन और संस्कारवान पति-पत्नी तो अपने मां बाप को भी यहां लाए थे, कोई अपनी बहन को लेकर आया था। क्योंकि मारवाड़ की संस्कृति में दुख सुख परिवार के साथ ही बांटने की परंपरा है। पैसा देकर पास तुमने भी खरीदे तो कोई फोगट में वे भी नहीं घुसे थे। इस तरह के बेहुदा नृत्य देखकर साथ आई जवां बहनों पर क्या गुजरी होगी शायद इन जोड़ों को अभी भले ही कोई परवाह नहीं, लेकिन कल जब इनके ही घर में कोई जवां होती बेटी...बहन....या और कोई सामाजिक मर्यादाओं को धत्ता बताते कुछ ऐसा वैसा कर गुजरेगी और यह तय समझो यह होना ही है शायद तभी इन्हें यह समझ में आएगा कि संस्कृति का महत्व क्या है और सामाजिक मर्यादाओं का मूल्य क्या होता ? संस्कृति के संक्रमण से लड़ने की जिम्मेदारी किसी एक की नहीं हम सबकी है। शर्म हया छोड़ चुके लोग यह अब भी समझ ले तो भी अभी कुछ नहीं गया है। नया साल का जश्न तो चंद घंटों में ही छोड़ गया....लेकिन आपके द्वारा की गई यह बेहुदगी कई दिनों तक चर्चा में रहेगी इसमे कोई संदेह नहीं। चंद लम्हों की खुशी चाहिए या जिंदगी भर का सम्मान यह तय आपको करना है क्योंकि नाचने का मौका तो कल फिर आएगा।
Monday, January 11, 2010
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