Monday, January 11, 2010

दिल से जरा सोच कर तो देख यार...

कुमार प्रवीण
जोधपुर। शास्त्रीनगर स्थित इक्कीस वर्षीय रवीना (बदला हुआ नाम और पता) की बातों को ही यदि सच माने तो नये साल को अपने दोस्तों के साथ मिलकर मनाने का अति उत्साह कई बार ऐसे जख्म दे जाता है जो जिंदगी भर किसी भी मरहम को लगाने के बाद भरते नहीं है और यह जख्म हर उस दिन बहुत ज्यादा दर्द पहुंचाते हैं जब इस तरह के ही कोई आयोजन होते हैं। दैनिक नवज्योति में प्रकाशित अभिभावक सांसत में बच्चे बेपरवाह खबर पढने के बाद रवीना ने अपनी पहचान को गुप्त रखने की विनती करते हुए ही बताया कि आज से दो साल पहले वो भी अपने माता पिता और भाई की तमाम सलाहों को दरकिनार कर अपनी सहेलियों के साथ नये साल का जश्न मनाने के लिए घर से बाहर गई थी। प्लानिंग हम दोस्तों की आपस मिलकर नया साल सेलिब्रेट करने की ही थी, मन में विश्वास भी था कि कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेंगे जिससे परिवार की साख को बट्टा लगे, लेकिन जैसे ही रात ढलती गई जोश और बहकावे में मेरा ही नहीं मेरी सहेलियों का भी यहां हर संकल्प टूटता गया। जिस होटल में हम थे वहां मेरी सहेली ने अपने किन्हीं दोस्तो को भी बुलाया हुआ था और पता नहीं इस पार्टी में खाने और पीने के बाद हम पर कौनसा नशा सवार हो गया कि हमें कुछ होश ही नहीं रहा। हम उस पार्टी में खूब नाचीं। हमारे साथ कुछ लड़के भी नाचे। इस धमचक में हमें यह अहसास भी नहीं रहा कि कोई हमारी फोटो भी खींच रहा है। तीन दिन बाद ही जब एक लड़के ने जो नए साल की पार्टी में हमारे साथ था ने मुझे वो फोटो दिखाकर दोस्ती के लिए दबाव डाला और मित्रता नहीं करने पर ये फोटो मेरे भाई और पिता को दिखाने की धमकी दी तब ही यह अहसास हुआ कि मां बाप की सलाह न मानकर रात को घर से बाहर निकलना कितना घातक होता है। उस घटना ने न केवल मेरा सुख चैन छीन लिया बल्कि पढाई में भी बाद में मैं मन नहीं लगा सकी। घुट-घुट कर ना चाहते हुए भी मुझे उसके साथ जबर्दस्ती की दोस्ती निभानी पड़ी। अब मेरी शादी हो गई है...लेकिन अभी भी मेरा मन डरा हुआ ही रहता है। घबराहट और बैचेनी किसी भी पल पीछा नहीं छोड़ रही। पता नहीं कब कोई और मेरे फोटो लेकर सामने ना आ जाए। रवीना ने कहा कि मेरा अनुभव इस मामले को लेकर कड़ा है और यह विश्वास जो आजकल की लड़कियां अपने माता पिता को तर्क देकर अपने आपको बहुत समझदार जताने की कोशिश करती है कि हमें अपने भले बुरे का अहसास अच्छे से है, मुझ में भी था। मैं भी अपने घर वालों को उस दिन यही कहकर निकली थी कि लड़कियों के साथ ही जा रही हूं किसी लड़के के साथ थोड़े ही भाग रही हूं, गई भी अपनी सहेलियों के ही साथ थी लेकिन ऐसी पार्टियों में वास्तव में वैसा सब कुछ नहीं होता जैसा आप सोचते हैँ और न ही इन पार्टियों में जाकर कहीं पर भी आप अपनी इच्छाएं चला सकती हैं। इन पार्टियों में तो एक तो एक नशा बहता है जिसमें हर कोई ना चाहते हुए ही बहता चला जाता है...डूब कर बर्बाद हो जाने का अहसास तो बहुत बाद में होता है, लेकिन उसके बाद भी अपने बस में कुछ नहीं रहता। एक खुशी हासिल करने की होड यहां जिंदगी भर की खुशियां ही नहीं हमेशा के लिए दिल का सुकुन भी छीन लेती है। उन लड़कियों को जो नए साल का जश् न मनाने के लिए अकेले ही कहीं बाहर जाने का मन बनाए बैठी है रवीना की सलाह यही है कि वो भले ही जाए, लेकिन सतर्क और सजग हर पल रहे और एक मिनट के लिए यह सोच ले कि यदि वो इस तरह की पार्टियों में नहीं भी जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा....मां बाप और भाई यदि उसे रोक रहे हैं तो तय हैं कहीं न कहीं वहां कुछ खतरा तो जरूर होगा ही क्योंकि मां बाप और भाई कोई उसकी खुशियों के दुश्मन थोड़े ही है। तय है यदि वो मन से ऐसा सोच लेगी तो उसकी आत्मा ही उसे ऐसी किसी भी पार्टी में जाने की इजाजत नहीं देगी। एक बार सोचकर तो देख यार......। मन नहीं माने तो चली जाना।


















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