राजस्थान हाईकोर्ट के कल के उस फैसले में जिसमें जिला प्रशासन को अल्टीमेटम देते हुए कहा गया है कि शहर की सुंदरता और यातायात में बाधक बन रहे अतिक्रमण को दो दिन में ध्वस्त करे से पूरे प्रदेश ने राहत की सांस ली है। हालांकि धर्म के कथित ठेकेदारों की भावनाएं इससे जरूर डगमगाई होगी, लेकिन वे लोग बहुत खुश हुए हैं जो हर रोज इस प्रकार के अतिक्रमणों की वजह से परेशानी भोग रहे हैं। जोधपुर शहर में ही इस तरह के एक हजार से ज्यादा अतिक्रमण तो प्रशासन ने चिन्हित किए हुए हैं, लेकिन यह संख्या पांच हजार से ज्यादा है। फिलहाल यह निर्णय जोधपुर के परिप्रेक्ष्य में ही आया है इसलिए यहां सब की नजरें टिक गई है। इस लिहाज से यह समय प्रशासनिक अधिकारियों के लिए ना केवल अपना कौशल दिखाने का है बल्कि पूरा क्रेडिट लेने का भी है। जोधपुर पूरे देश में मिसाल बन सकता है। इस फैसले की सफलता शहर का स्वर्णिम इतिहास लिख सकती है इसलिए हमें अपने शहर का गौरव बढाने के लिए सभी पूर्वाग्रहों को छोड़ना होगा।
हालांकि हाईकोर्ट के अडतालीस घंटे के अल्टीमेटम से कई अधिकारियों की सांसे फूल रही है, लेकिन यह समय यूं घबराने और हड़बड़ाने का नहीं है और न ही आवेश में आकर धैर्य खोने का है। अधिकारियों को बिना विलंब किए हिम्मत दिखाते हुए फिलहाल अन्य काम को स्थगित रखते हुए इस दिशा में तत्परता से जुट जाना चाहिए। (शेष पृष्ठ 11 पर)
यह फैसला उस समय आया है जब बड़ी संख्या में लोग सड़कों के बीच में बने अतिक्रमण के कारण परेशान हैं और कई परिवारों ने इस वजह से अपने घर के चिराग को खोया है। किसी भी धर्म में सड़कों के बीच में धार्मिक स्थान बनाने की बात नहीं कही गई है और ना ही कहीं इस बात का उल्लेख है कि एक बार यदि कहीं कोई धार्मिक स्थान स्थापित हो गया तो उसको बाद में कहीं अन्यत्र स्थापित नहीं किया जा सकता। यह प्रोपगंडा धर्म के उन कथित ठेकेदारों द्वारा ही गढ़ा और प्रचारित किया गया है जिनकी रोजी रोटी और वजूद इसी से चलता है। सड़कों के बीच में बैठकर ध्याने कोई भगवान नहीं मिलते और ना ही पहले चार पत्थर और बाद में चबूतरा और फिर बिल्डिंग खड़ी कर देने से वहां आराध्य प्रतिष्ठापित हो जाते हैं। धार्मिक स्थान तो राहत देने के लिए, दुख हरने के लिए और मन को सकुन पहुंचाने वाले होते हैं और वो भी किसी एक को नहीं पूरे समाज को, लेकिन सड़कों के बीच में जिस तरह से धार्मिक स्थान बनाए गए हैं वो तो केवल कुछेक लोगों की ही स्वार्थपूर्ति कर रहे हैं अधिकांश तो उससे आहत ही हो रहे हैं। यह हमें अब समझ ही लेना चाहिए। सड़कों को रोककर बने अतिक्रमणों की आक्रामकता वे ही लोग समझ सकते हैं जिन्होंने इसकी वजह से अपने घर के लोगों को खोया है या फिर जो इन सड़कों से गुजरते हुए चोटिल हुए हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले ने उन सब लोगों के दर्द को हर लिया है और घबराहट व चिंता को दूर किया है। अब जिम्मेदारी प्रशासन के साथ जनता की भी है। हम सभी को अपना स्वार्थ छोड़कर हाईकोर्ट के इस फैसले के महत्व को ना केवल समझना होगा बल्कि कइयों को समझाना भी होगा। अधिकारियों की जहां यह जिम्मेदारी है कि वो मजबूती से इस फैसले पर अमल करे वहीं जनता की जवाबदेही भी कुछ कम नहीं है। आमजन के सहयोग से ही अधिकारी अच्छे से इस काम को अंजाम दे पाएंगे। इसलिए हम सभी को भी फिलहाल दूसरे कामों कों पिछली वरीयता में रख प्राथमिकता से इसमें जुटना होगा। समय भले ही कम है लेकिन सब यदि जुट जाएंगे तो यह संभव होते देर नहीं लगेगी, तय है। हिम्मत करके तो देखो। अतिक्रमण को हटाने के साथ ही अधिकारियों के साथ हम सब को यह संकल्प भी लेना होगा कि अब ना तो हम अतिक्रमण करेंगे और ना ही करने देंगे।
Thursday, November 5, 2009
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