Wednesday, February 3, 2010

यह तरीका तो ठीक नहीं

कुमार प्रवीण
जोधपुर। बुधवार को शहर की सड़कों पर भीख मांगने निकले जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के शिक्षकों की मंशा तो इस तरह का घृणित कृत्य कर सरकार को नीचा दिखाने की ही थी, लेकिन इससे सरकार की सेहत पर तो कोई खास असर नहीं पड़ा हां शिक्षकों की गरिमा को जरूर इन्होंने पलीता लगा दिया। भीख मांगना कोई अच्छा काम है क्या? कुलपति प्रो. नवीन माथुर ने भी बाद में इनसे यही पूछा।
यह सही है कि महंगाई के इस दौर में इन अंशकालीन शिक्षकों को जो कुछ मिल रहा है वो कम है....इससे इनका पूरा नहीं पड़ता। इनकी मांग है कि मानदेय बढ़ना चाहिए। उनकी इस मांग से संभवतया सरकार भी सरोकार रखती है....और हमको भी पूरी हमदर्दी है... सरकार मानदेय बढ़ाना चाहती है, लेकिन बढ़ा नहीं पा रही...। इस कारण ये अंशकालीन शिक्षक परेशान हैं। इनकी परेशानी लाजिमी है, लेकिन अपनी इस परेशानी की ओर इन्होंने सरकार का ध्यान खींचने के लिए कथित गांधीगीरी का नारा लगाते हुए जिस तरह से आज सड़कों पर खिलखिला कर भीख मांगी उससे शहर में कोई खास अच्छा संदेश नहीं गया। क्योंकि भीख कमजोर लोग मांगते हैं और शिक्षक कभी कमजोर नहीं हो सकता यह जग जानता है। फिर इन्होंने जिस तरह से भीख मांगी भी उससे भी इनके प्रति किसी की हमदर्दी नहीं जुड़ी...लोगों ने पैसे देकर यही कहा कि नाटक कर रहे हैं ये सब....। सही भी है यह पूरा घटनाक्रम किसी बेहूदे और शर्मसार करने वाले नाटक से कम नजर नहीं आया। क्योंकि ऐसे में जब बच्चे तनाव में हैं....अभिभावक परेशान हैं.....और सब मिलकर इस प्रयास में हैं कि किस तरह से बच्चों में पल रहे तनाव को कम करके उनके मन में पल रही हताशा को दूर किया जाए उस समय में यदि चंद शिक्षक ही हाथ में कटोरा लेकर सड़कों पर भीख मांगने के लिए जमा हो जाए तो हमारे बच्चों में क्या संदेश जाएगा? भीख मांगने आए इन शिक्षकों को यह सोचना चाहिए था। शिक्षकों से समाज यही अपेक्षा करता है कि वो बच्चों में संघर्ष की प्रवृत्ति पैदा करे, युवाओं को जुझारू बनाए और उन्हें यह बताए कि हताशा और निराशा से कभी अधिकारों की लड़ाई नहीं जीती जाती। अब तक तो शिक्षकों ने यही किया है, पता नहीं भीख मांगने आए इन शिक्षकों को संघर्ष की कायराना और हताशा भरी यह राह किसने सुझाई ? क्योंकि हमने यही सीखा है कि मांगन मरण समान है...मत कोई मांगों भीख, मांगन से मरना भला...यही सद्गुरू की सीख।
कुलपति प्रो. नवीन माथुर को भी इसका अहसास अच्छे से है...वे जानते हैं कि भीख मांगना कोई अच्छा काम नहीं है और न ही यह किसी हक की लड़ाई में आंदोलन का हथियार बनना चाहिए...इसलिए उन्होंने भीख मांग रहे अंशकालीन शिक्षकों को फटकार भी लगाई, लेकिन जिन लोगों ने भीख दी वे सब यह नहीं समझ पाए... और खास बात यह कि जिनके पास पावर है वे भी भीख देने से नहीं चूके...हालांकि उन्होंने भीख इन शिक्षकों के दबाव में आकर ही दी पर भीख देकर कहीं न कहीं वे भी सवालों के घेरे में तो आ ही गए। आज परेशान कौन नहीं है....महंगाई की मार ने सबको बुरी तरह से पछाड़ दी हुई है...आज अंशकालीन शिक्षक भीख मांगने निकले..कल कोई और निकलेगा...परसो कोई और.....कल्पना करो यदि यह सब होने लगा तो फिर कैसे होगा विकास।

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