Monday, April 5, 2010

बेटी की बर्बादी ने याद दिलाया बिखराव का दर्द

कुमार प्रवीण
जोधपुर। अश्लील फिल्मों से ब्लेकमेल की जो घटना कल अजमेर में उजागर हुई है उसने सबको अंदर तक डरा कर रख दिया है। उन घरों में यह चिंता ज्यादा बढ़ी है जिनके यहां जवां बेटियां है और जहां पति पत्नी दोनों नौकरी करते हैं। ऐसे घरों में आज एक बार फिर संयुक्त परिवारों से हुआ बिखराव उन्हें गहरा दर्द पहुंचा रहा है।
अजमेर के पट्टूकला क्षेत्र के जिस परिवार की बेटी आज सब कुछ गंवा कर दुख के समंदर में डूबी है पता नहीं उस परिवार की क्या मजबूरी रही होगी कि जिस कारण उन्हें अपने घर के बड़े बुजुर्गों को छोड़कर इस तरह किराए का मकान लेकर अकेले रहना पड़ा, लेकिन ऐसे परिवार बहुतेरे हैं जो जरा सी बात पर अपने झूठे अहंकार और केवल मौज मस्ती करने व एकांत पाने के लिहाज से ही अपने घर के बड़े बुजुर्गों को छोड़कर झूठी शान के मोह में जवां बेटियों को लेकर अकेले रह रहे हैं। यह घटना ऐसे पति पत्नी के लिए निश्चित तौर पर करारा सबक लेकर आई है।
यदि अजमेर का यह परिवार भी संयुक्त रूप से रह रहा होता तो तय है उनकी बेटी की आज जो गत हुई है वो नहीं हुई होती। अजमेर का यह मामला तो उजागर हो गया इसलिए चर्चा भी हो रही है अन्यथा पता नहीं ऐसे कितने परिवार है जहां पति पत्नी के नौकरी पर जाने के बाद जवां हुई बेटियों को किन-किन राक्षसों की हवस का शिकार बनना पड़ रहा होगा? भगवान ही जाने।
व्यस्तता के इस दौर में वैसे ही समय किसी के पास है नहीं और नौकरियों के सिलसिले में जहां पति पत्नी को घंटों अपने घरों से बाहर रहना पड़ रहा है वहां दिन भर बेटियां यदि खुद ही आवारागर्दी पर उतारू हो रही होगी....तो क्या पता ? क्योंकि जवां होते बेटे बेटियों पर निगरानी रखने...उनके दोस्त कैसे हैं......बच्चे कहां जाते हैं.....क्या करते हैं.......यह सब कुछ जांचने जानने का रिवाज तो हम उसी दिन पीछे छोड़ आए जब हम अपने बुजुर्ग मां बाप को उनके हाल पर ही अकेला छोड़ कर रवाना हुए थे। उन्हें इसलिए ही तो छोड़ा था क्योंकि वे इस संदर्भ की पूछताछ कुछ ज्यादा करते थे। विशेष कर बहुओं से ....। पराए घर से आई ये बहुए आजादी पसंद थी....उन्हें इस तरह की टोकाटोकी अपने अस्तित्व पर हमला लगती थी...इसलिए पहले तो एक सोची समझी साजिश के तहत रोज किच किच कर इन्होंने घर का माहौल बिगाड़ा.....और बाद में जब बात बढ़ी तो सामान उठाकर रवाना हो गई। अब जब ये बहूएं मां बन गई हैं... इनकी बेटियां जवां हो गई हैं...ये नौकरियां भी करने लगी हैं.....तो बेटियों की चिंता सता रही है। और जब तब अजमेर के पटृटूकला में जो हुआ वो खबरें उजागर होती है तो इनका मन भीतर से कांप उठता है। वाजिब भी है। जिन बच्चों को तमाम तरह की मुसीबतें उठाकर पाल पोस कर बड़ा किया हो बचपने में कोई उन्हें यूं बहला फुसला कर उनकी जिंदगी बर्बाद कर दे भला कौन बर्दाश्त करेगा। इसीलिए अब ठोकर खाए परिवारों को अपने बुजुर्गो की टोकाटोकी के मतलब समझ आ रहे हैं। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। मन में मैल अपने ही आया था....वे तो बडेÞ हैँ....उन्हें कुछ याद नहीं वे तो इंतजार में आंखे गड़ाए बैठे हैं.....लौट जाओ घर.....और हो जाओ निश्चिंत....वहां आपकी बेटी को बहलाने की हिम्मत ना तो किसी पडौसी की हो सकती है और ना ही आपकी बेटी ही आवारागर्दी करने की हिमाकत कर सकती है। क्योंकि उनकी आंखों में ईश्वर ने कुछ ताकत ही ऐसी दी है कि उन्हें हर गलती पलक झपकते ही नजर आ ही जाती है।
अजमेर के पट्टूकला में भी बेटी की बर्बादी का हिसाब चुकाने की पहल उसके नाना नानी ने ही की। इस घटना ने एक बार फिर से इस यह कहने की पुरजोर आवश्यकता प्रतिपादित की है कि हमें अपने बच्चों पर निगरानी जरूर रखनी चाहिए। विशेषकर जब बच्चे जवां हो तो उनकी हर हरकत पर नजरें रहनी ही चाहिए। अजमेर के पट्टूकला में भी जो कुछ हुआ वो हुआ तो एकदम से लेकिन उसको बच्चों ने दोहराया बड़े ही इत्मीनान से। यदि मां - बाप एक बार भी गंभीरता से अपनी बेटी की मनोस्थिति उसके हाव भाव को पढ लेते तो तय है आज वो सब कुछ नहीं होता जिनके लिए उनका पूरा परिवार ही नहीं सब जानने वाले भी आंसू बहा रहे हैं।

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