Monday, January 11, 2010

अभिभावक मानसिक दबाव में आ गए तो

जोधपुर। पिछले तीन दिनों से जिस तरह से स्कूली व कॉलेजी बच्चों के आत्महत्याएं की खबरें बाहर आ रही है उसने अभिभावकों की सांसे फूला दी है। हालांकि इन बच्चों ने आत्महत्या क्यों की यह अभी तक जांच का ही विषय है, लेकिन जहां ये बच्चे मरे हैं वहां चल रही चर्चाओं के स्वर सीधे तौर पर इसका कारण बच्चों के दिमाग पर मानसिक प्रेशर को मान रहे हैं और इसके लिए वे अभिभावकों को दोषी ठहराने से भी नहीं चुक रहे। हाल ही में रिलीज थ्री इडियट में जिस तरह से मानसिक दबाव को प्रभावी बनाकर प्रस्तुत किया गया है बताया जा रहा है कि उसके बाद से ही यह हौव्वा बनकर न केवल बच्चों का दिमाग खराब कर रहा है बल्कि अभिभावकों के मन में भी कहीं न कहीं आत्मग्लानि भर रहा है। बच्चों के कॅरियर के प्रति अभिभावकों की इच्छा अचानक इस कदर मानसिक दबाव का राक्षस बनकर उनके घरों की खुशियां छीन लेगी यह अहसास बहुतों को नहीं था, लेकिन थ्री इडियट ने इन मानसिक दबाव के राक्षस को खून पिलाकर इतना वहशी बना दिया है कि यह अभी तो केवल बच्चों को ही पहले बगावत करने और फिर दुनिया छोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। यदि सही ढंग से इसको नियंत्रित यानी परिभाषित नहीं किया गया तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में यह राक्षस अभिभावकों भी मानसिक दबाव महसूस करवा कर आत्म हत्या के लिए प्रेरित कर दे। क्योंकि जिस रूप में आज महंगाई ने मुंह फैलाया है और सामाजिक व्यस्तताएं बढ़ी है उस दौर में सबसे ज्यादा मानसिक प्रेशर में यदि हैं तो वो अभिभावक ही है। बच्चे पर तो केवल उसके अपने भविष्य को संवारने का ही बोझ है और वो भी आधा अधूरा, क्योंकि जिस कॅरियर की वो पढाई कर रहा है उसका खर्चा उसके अभिभावक ही उठाते हैं। बच्चे को इसका बंदोबस्त नहीं करना पड़ता। जबकि माता पिता पर तो उसके भाई बहनों को भी पालने पढाने की जिम्मेदारी है। घर भी उन्हें ही चलाना है, क्योंकि बच्चा तो जब सहयोग करेगा तब करेगा। यही नहीं सामाजिक रीति रिवाजों का निर्वहन भी कोई बातों से नहीं होता इसके लिए भी पैसों की जरूरत होती है। यह पैसे भी मां बाप जैसे-तैसे करके इस रूप में जुटाते हैं कि बाहर पढाई कर रहे बच्चे की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़े, उसकी सुख सुविधाएं कम नहीं हो। जिस बच्चे में माता पिता डाक्टर या इंजीनियर बनना देखते हैं वे उसे घर की हर दिक्कतों से दूर रखते हैं। उस पर केवल पढ़ने की ही जिम्मेदारी रहती है और यदि कोई से मन पढता है तो तय किसी प्रकार का कोई मानसिक दबाव उसके पास नहीं फटक सकता।
जबकि मां बाप तो हर समय इस बात से भी डरे हुए रहते हैं कि कहीं उनका बच्चा गलत संगत में नहीं पड़ जाए। मानसिक दबाव का बोझ किसी बेटी के बाप से पूछो जिसकी बेटी रात को घर आने में जरा सी लेट हो गई हो। मां बाप की सांसे फूल जाती है। कोई बाप जो बेटी को उसके किसी बॉय फ्रेंड के साथ बात करते देखता है तो उस समय उस पर मानसिक दबाव कितना होता होगा, कोई कल्पना कर सकता है। पर मां बाप तो यह सब देखकर आत्म हत्या नहीं करते? ना ही बच्ची को मरने के लिए प्रेरित करते हैँ ? कोई बच्चा शराब पीकर घर आता है उस समय किसी बाप के दिल पर क्या गुजरती है यदि महसूस कर सकते है तो करके देखो मानसिक तनाव का अर्थ समझ में आ जाएगा। उस बाप की स्थिति देखो जिसका कोई बेटा या बेटी किसी हादसे में मर जाता है। शायद उस स्थिति में उसका मानसिक प्रेशर सबसे ऊंची स्थिति में होता होगा, लेकिन तब भी वो आत्महत्या करके अपने बीवी बच्चों को अकेला नहीं छोड़ता।
और अब बच्चों में यदि किसी मां बाप ने डाक्टर इंजीनियर के सपने देख लिए तो बच्चे पर मानसिक प्रेशर बन जाएगा क्योंकि वो कलाकार बनना चाहता है, पेंटर बनना चाहता है, फोटोग्राफर बनना चाहता है। कमाल है। कल को कोई बेटा या बेटी मवाली या मैडम एक्स बनने का सपना पाल लेगी....और मां बाप उसे रोकेंगे, कहेंगे बेटा कोई अच्छी नौकरी करो....तो वो मानसिक दबाव में आ जाएंगे। यह कैसा दौर है। समझ में नहीं आता। यह सब जानते हैं कि जिस बेटे या बेटी में मां बाप अपने सपने साकार होते देखना चाहते हैं उसे घरों में आए दिन उठने वाली परेशानियों से दूर रखते हैं। उस पर जरा सी भी आंच नहीं आने देते। उसे सारी सुविधाएं अपने सुख कम करके मुहैय्या करवाते हैं .....इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि कोई महसुस करे कि उस पर अभिभावकों ने मानसिक दबाव डाल दिया है तो हमें अब मानसिक दबाव की परिभाषा को नए शब्दों में गढना होगा।
एक तरफ तो हम यह कहते नहीं थकते कि संघर्ष और लगन से किसी भी मंजिल को पाने के लिए बढ़ो सफलता आपके कदमों को चुमेगी दूसरी ओर पढाई की जिम्मेदारी को मानसिक दबाव बनाकर अभिभावकों पर बदनामी का ठीकरा फोड़ों। दोनों विरोधाभासी है जिसका तालमेल किसी भी रूप में संभव नहीं है, लेकिन थ्री इडियट ने जबरन यह तालमेल बिठाने की कोशिश की है। यह तालमेल बच्चों और अभिभावकों के बीच दूरी ही पैदा नहीं कर रहा बल्कि एक कमजोर और असहाय व मुसीबतों के सामने हथियार डालने वाली ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहा है जो यदि फल फूल गई तो देश में किसी का भी सुख चैन से जीना दुश्वार हो जाएगा। क्योंकि जो युवा अपने अभिभावकों के सपनों को हर सुविधा मिलने पर भी हासिल करने में स्वयं को सक्षम नहीं महसूस कर रहे हैं वे जरा सी कोई मुसीबत आई जैसे आतंकवादियों से सामना हो या देश पर दुश्मनों का हमला कैसे हमारी तो छोड़ों स्वयं की ही रक्षा कर पाएंगे, क्योंकि इस परिस्थिति में तो उन पर मानसिक दबाव हावी हो जाएगा और दुश्मन उनका कुछ बिगाड़े उससे पहले वे खुद ही अपने आपको मारकर दुनिया छोड़ जाएंगे। कल्पना करो कैसी स्थिति होगी।
लक्ष्य से पीछे हटना या स्वयं को मारकर कभी भी कोई मानसिक दबाव से भला जीता है। मानसिक दबाव कुछ है ही नहीं, यह तो जानबूझ कर हमको कमजोर करने की कोई साजिश है। गंभीरता से इसकी तह में जाओगे तो स्वत: इसकी परते उघड़ती नजर आएगी।

3 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

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  2. वाह, एक प्रभावित करने वाला आलेख और सामयिक तो है ही । इसी तरह हिंदी ब्लोग्गिंग को समर्थ बनाते रहें ।भविष्य के लिए शुभकामनाएं
    अजय कुमार झा

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